आज हमारा समाज , हमारा देश कितना आगे बढ़ गया है |मनुष्य ने देखते – देखते कितनी उन्नति कर ली है | पर इसके साथ ही आज का मानव अनेक रोगों से ग्रसित हो गया है | हम बात कर रहें है डिप्रेशन( मन का विकार) की | आज हर दूसरा आदमी डिप्रेशन का शिकार हो रहा है | डिप्रेशन यानी मन की कुंठा | तन की बिमारी का तो फिर भी इलाज संभव है पर मन के रोग का तो कोई इलाज ही नहीं है |
हमारा देश तो संतों , ऋषियों का देश कहलाता है | संतवाणी हमेशा सैयंम और संतोष पर जोर देती है | हमारे पूर्वज भी सादा जीवन ही व्यतीत करते थे | शुद्ध हवा- पानी और फल – फूल खा कर भी संतुष्ट रहते थे | लेकिन अभी दो – तीन दशकों से सब कुछ बदल सा गया है | ऐश-आराम के साधन जितने अधीक बढे हैं , खुशी उतना ही दूर जा रही है | आज कोई भी खुश नहीं लगता | संतों तो अपने जीवन से गायब ही हो गया है | पहले लोग थोड़े मैं ही कुश हो जाते थे , मिल- जुल कर रहते थे | आज तो अधिक और अधिक पाने की जैसे होड़ मची हुई है |
जब तक हमारा जिंदगी जीने का कोई उचित लक्ष्य नहीं होगा तब तक हम सुखी नहीं हो सकते | सुख और दुःख तो एक भावना ही है , एक सोच का ही नाम है | किसी भी कार्य के दो पहलूँ होते हैं | अगर हम अच्छाई के दृष्टि कोण से देखेंगे तो हमे अच्छा ही अच्छा नज़र आएगा और बुरे खोजेंगे तो बुरा ही बुरा दिखेगा | जैसे- एक गिलास मैं आधा पान है | कुछ लोगों को वह गिलास आधा खाली दिखेगा तो कुछ को आधा भारा हुआ | गिलास तो दोनों के लिये एक ही है , पर अपनी – अपनी सोच के हिसाब से खली या भरा नज़र आता है | उसी प्रकार हम खुश या दुखी अपनी अपनी सोच के हिसाब से होतें है | जिनको हर चीज़ मैं कमियां दिखती है , वे ही अक्सर डिप्रेशन के शिकार होतें है | मेरे विचार से शुरू मे तो हम हर चीज़ में कमी या बुराई देखते हैं , और बाद मैं यही हमारी आदत बन जाती है और बाद मैं एक रोग के रूप मैं जड़ जमा लेती है |
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