
एक माँ बच्चे को जनम देने के पेहेले नौ महीने तक उसे अपने अन्दर महसूस करती है , तरह-तरह के ख्वाब बुनती है |सपने देखती है मेरा बच्चा कैसा होगा |मैं उसके लिए ऐसा करुँगी वैसा करुँगी |मन ही मन वह उस बच्चे से प्यार करने लगती है |अब जब कुछ समय बाद बच्चा जनम ले लेता है तब वह प्यार ममता मैं बदल जाता है और वह उसे गोद मैं उठाकर अपने आप को दुनिया मैं सबसे खुश नसीब इंसान महसूस करती है |आँखों मैं ख़ुशी के आंसू होते हैं , वहीँ उसके मन मैं एक कोने मैं जनम लेता है उसका दर और वह पूरी तरह से सावधानी पूर्वक उसकी रक्षा मैं जुट जाती है |कभी उसकी नज़र उतारती है , कभी उसे आँचल मैं छुपाती है |कुछ दिनों , महीनो के बाद जब बच्चा कुछ बड़ा होता है तो वोह माँ की गोद से उतरना चाहता है , उलटना पलटना चाहता है तब देखिये माँ बच्चे का संवाद —
बच्चा – “माँ , अब मुझे निचे उतार , तू मुझे बहुत दुलार करती है” | लेकिन अब मेरा मन कर रहा है कि मैं भी उलटू-पुल्तु , नीचे उतारू |
माँ– (डरते हुए) माँ की ममता और डर उसको यह करनी की इज़ाज़त नहीं देते | वह चाहती है कि मेरा बच्चा बड़ा हो लेकिन डर से कहीं मेरा बच्चा गिर न जाये , उसे कुछ हो न जाये , वह उसे अपने गोद मैं ही रखना चाहती है |
कुछ समय बीतने पर जब बच्चा चलना चाहता है तो कहता है -“माँ अब मुझे चलने दे , तू मेरा हाथ पकड़ ले लेकिन मैं चलूँगा तू डर मत माँ , गिर कर भी मैं उठूँगा , उठकर फिरसे कोशिश करूँगा माँ , मैं सीख जाऊंगा “|
माँ – हाँ बच्चे , लेकिन तू गिरेगा तो तुझे लग जाएगी , दर्द मुझे होगा मेरे बच्चे |
बच्चा- नहीं माँ मुझे भी तो अनुभव करने दे , ठोकर कैसी होती है? , उसी से तो चलना सीखूंगा | माँ , जब तक मैं गिरूंगा नहीं उठूँगा कैसे आगे कैसे बढूँगा , मुझे भी तो दुनीया देखनी है |
माँ (डरते हुए)– बच्चे मैं हूँ ना ! तुझे यह सब करने की क्या जरूरत है ? दुनिया देखकर क्या करेगा | ,मैं ही तेरी दुनिया हूँ बेटा|
बच्चा– तू तो मेरी सब कुछ है माँ , मेरी दुनिया , मेरा विश्वास , मेरी गुरु | तेरी ही ऊँगली पकड़ कर मैंने चलना सीखा , हँसना बोलना सीखा , सिखाने वाली तू ही है माँ | लेकिन बाहरी दुनिया मैं भी मुझे जाना होगा | माँ मुझे पढने लिखने के लिए बहार निकलना होगा | तू डर मत माँ तेरी दी हुई सीख , संस्कार मेरी हिम्मत है माँ |
माँ ( कुछ कुछ समझते हुए )– हाँ बेटा तू सही कह रहा है | मुझे समझ मैं आ गया है कि मेरी ममता को तेरा सहारा बनाना है | तेरे मनोबल को आगे बढ़ाना है | तुझे अपने डर से बहार निकलकर एक बड़ा आदमी बनने मैं मदद करनी है |मैं तुझे अपने नज़रों के सामने रखूंगी और तुझे कामयाब होते हुए देखूंगी बच्चे |
माँ का डर कुछ हद्द तक सही होता है क्यूंकि बहुत दर्द सह कर वह अपने बच्चे को पाती है |लेकिन हर समय माँ डर के कारण बच्चे को टोकती रहेगी , तो बच्चा कुछ सिख नहीं पायेगा |हर माँ को चाहिए बच्चे की हर क्रिया पर नज़र रखते हुए उसे सही मार्ग दिखाए| और आगे बढ़ने मैं मदद करें | नाकि हर समय उसे पीछे की तरफ ले जाएँ | माँ का जीवन मैं होना बहुत महत्व रखता है | इश्वर का माँ के रूप मैं बच्चे को बेशकिमती तोफा सोंपा है लेकिन उसकी कदर बच्चे को ताउम्र करनी चाहिये |माँ के त्याग , तपस्या और तुलना कभी किसी से नहीं हो सकती | धन्यवाद |
मंजू मधोगारिया .
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